सीरिया रासायनिक हमले की तैयारी में, अमरीका ने दी चेतावनी
इसलिए ये हैरानी वाली बात नहीं है कि गुरुवार को होने वाली बैठक में यह मुद्दा एक अहम एजेंडे के तौर पर शामिल है.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स में वरिष्ठ विश्लेषक डॉक्टर श्रुति बैनर्जी का मानना है कि दोनों देशों के नेता इसका हल ढूंढने की कोशिश करेंगे.
उन्होंने कहा, "दोनों ही देश इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाएंगे. हालांकि दोनों के पास इसका हल ढूंढने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. अमरीका और भारत के बीच कुछ मुद्दों को लेकर असहमतियां और संशय ज़रूर हैं, लेकिन भरोसे की कमी नहीं."
इस वार्ता से कुछ सकारात्मक नतीजों की उम्मीद की जा रही है.
दोनों देश 'कम्यूनिकेशन्स कंपैटबिलटी एंड सिक्युरिटी अग्रीमंट' पर हस्ताक्षर के लिए बातचीत आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं. अगर इस डील पर बात बन गई तो दोनों देशों के सेनाओं के बीच संवाद और समन्वय बेहतर हो जाएगा.
अमरीका साफ़ कह चुका है कि वो भारत के ईरान से कच्चा तेल आयात करने के ख़िलाफ़ है. हालांकि भारत के लिए अमरीका की इस मांग को मानना मुश्किल हो सकता है. डॉक्टर बैनर्जी के मुताबिक भारत ईरान से तेल ख़रीदना बंद करना अफ़ोर्ड नहीं कर सकता.
भारत ने ईरान के चाबहार में बंदरगाह बनाने के लिए 50 करोड़ डॉलर से ज़्यादा का निवेश करने का वादा किया है. इस बंदरगाह से भारत के लिए दूसरे एशियाई देशों तक पहुंचना आसान होगा जिससे भारत के व्यापार में इजाफ़ा होगा.
डॉक्टर बैनर्जी कहती हैं, "ईरान भारत का महत्वपूर्ण रणनीतिक सहयोगी है. ईरान से तेल का आयात बंद करना उसे ख़फ़ा कर सकता है. हां, ये हो सकता है कि भारत आयात किए जाने वाले तेल की मात्रा कम कर दे लेकिन ये भी इस बात पर काफ़ी हद तक निर्भर करेगा कि अमरीका भारत के इस फ़ैसले को कैसे देखता है."
अमरीका और भारत अफ़गानिस्तान के साथ अपनी नीतियों को लेकर भी मतभेद रखते हैं, हाल ही में अमरीका के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी का कहना था कि अमरीका तालिबान के साथ सीधे बातचीत करने को तैयार है, वहीं भारत ऐसा करने से हमेशा हिचकता रहा है.
डॉक्टर बैनर्जी कहती हैं, "भारत अफ़गानिस्तान को सबसे ज़्यादा मदद देने वाले देशों में से है इसलिए ये वहां होने वाली शांति प्रक्रिया में एक अहम भागीदार बनना चाहेगा. इसलिए भारत को यह पसंद नहीं आएगा कि अमरीका उन समूहों से सीधी बातचीत करे जिनके पीछे पाकिस्तान का हाथ है.''
जहां तक व्यापार की बात है तो ये इस वार्ता का प्रमुख एजेंडा नहीं होगा. हालांकि कुछ ज़रूरी मुद्दों पर चर्चा हो सकती है.
अमरीका ने इस साल भारत से आयातित स्टील और एल्युमीनियम के उत्पादों पर टैक्स बढ़ा दिया था. इसके जवाब में भारत ने भी अमरीका के कई उत्पादों पर लगने वाला आयात शुल्क बढ़ा दिया था.
आर्थिक संकट से जूझ रहे देशभर के मदरसा शिक्षकों ने बुधवार यानी 5 सितंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ धरना-प्रदर्शन किया.
मदरसा शिक्षकों का आरोप है कि केंद्र सरकार शिक्षकों को तय मानदेय नहीं दे रही है, जिससे अधिकांश मदरसे बंद होने की कगार पर आ गए हैं और शिक्षकों की हालत बद से बदतर होती जा रही है.
दरअसल, केंद्र सरकार स्कीम फॉर प्रोवाडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन इन मदरसा (एसपीक्यूएम) यानी मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत पोस्ट ग्रैजुएट शिक्षकों को 12 हज़ार और ग्रैजुएट शिक्षकों को 6 हज़ार प्रतिमाह मानदेय देती है. मदरसा शिक्षकों का आरोप है कि पिछले 30 महीने से एसपीक्यूईएम योजना के तहत मिलने वाला मानदेय नहीं मिल रहा है.
इसके तहत 2016-17 के सत्र से लेकर अब तक का किसी भी शिक्षक को मानदेय नहीं दिया गया है. इससे उनकी आर्थिक स्थिति बदतर हो रही है और शिक्षक नौकरी छोड़ने को भी मजबूर हो रहे हैं.
इस्लामिक मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एजाज अहमद ने बीबीसी को बताया, "केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ग्रेजुएट शिक्षक को छह हज़ार रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक को 12 हज़ार रुपये देती है जबकि राज्य सरकार ग्रेजुएट शिक्षक को दो हज़ार रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक को तीन हज़ार रुपये अलग से देती है. राज्य सरकार ने अपना अंश दे दिया है, लेकिन केंद्र ने पिछले 30 महीने से अपना अनुदान नहीं दिया है. इससे शिक्षकों की भुखमरी की स्थिति आ गई है. प्रदेश के सभी मदरसा शिक्षकों की योग्यता मान्यता के अनुरूप है."
बीबीसी ने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गय्यूर उल-हसन रिज़वी से इस विषय में पूछा.
उन्होंने कहा, "मदरसा शिक्षकों का केंद्र सरकार से पिछले 30 महीनों से मानदेय बकाया है. इसी को लेकर मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने बुधवार को मुझसे मुलाकात की. मैं केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात करके इस मसले पर चर्चा करूंगा और पूरी कोशिश करूंगा कि मदरसा शिक्षकों को उनका बकाया मानदेय मिल जाए."
इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स में वरिष्ठ विश्लेषक डॉक्टर श्रुति बैनर्जी का मानना है कि दोनों देशों के नेता इसका हल ढूंढने की कोशिश करेंगे.
उन्होंने कहा, "दोनों ही देश इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाएंगे. हालांकि दोनों के पास इसका हल ढूंढने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. अमरीका और भारत के बीच कुछ मुद्दों को लेकर असहमतियां और संशय ज़रूर हैं, लेकिन भरोसे की कमी नहीं."
इस वार्ता से कुछ सकारात्मक नतीजों की उम्मीद की जा रही है.
दोनों देश 'कम्यूनिकेशन्स कंपैटबिलटी एंड सिक्युरिटी अग्रीमंट' पर हस्ताक्षर के लिए बातचीत आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं. अगर इस डील पर बात बन गई तो दोनों देशों के सेनाओं के बीच संवाद और समन्वय बेहतर हो जाएगा.
अमरीका साफ़ कह चुका है कि वो भारत के ईरान से कच्चा तेल आयात करने के ख़िलाफ़ है. हालांकि भारत के लिए अमरीका की इस मांग को मानना मुश्किल हो सकता है. डॉक्टर बैनर्जी के मुताबिक भारत ईरान से तेल ख़रीदना बंद करना अफ़ोर्ड नहीं कर सकता.
भारत ने ईरान के चाबहार में बंदरगाह बनाने के लिए 50 करोड़ डॉलर से ज़्यादा का निवेश करने का वादा किया है. इस बंदरगाह से भारत के लिए दूसरे एशियाई देशों तक पहुंचना आसान होगा जिससे भारत के व्यापार में इजाफ़ा होगा.
डॉक्टर बैनर्जी कहती हैं, "ईरान भारत का महत्वपूर्ण रणनीतिक सहयोगी है. ईरान से तेल का आयात बंद करना उसे ख़फ़ा कर सकता है. हां, ये हो सकता है कि भारत आयात किए जाने वाले तेल की मात्रा कम कर दे लेकिन ये भी इस बात पर काफ़ी हद तक निर्भर करेगा कि अमरीका भारत के इस फ़ैसले को कैसे देखता है."
अमरीका और भारत अफ़गानिस्तान के साथ अपनी नीतियों को लेकर भी मतभेद रखते हैं, हाल ही में अमरीका के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी का कहना था कि अमरीका तालिबान के साथ सीधे बातचीत करने को तैयार है, वहीं भारत ऐसा करने से हमेशा हिचकता रहा है.
डॉक्टर बैनर्जी कहती हैं, "भारत अफ़गानिस्तान को सबसे ज़्यादा मदद देने वाले देशों में से है इसलिए ये वहां होने वाली शांति प्रक्रिया में एक अहम भागीदार बनना चाहेगा. इसलिए भारत को यह पसंद नहीं आएगा कि अमरीका उन समूहों से सीधी बातचीत करे जिनके पीछे पाकिस्तान का हाथ है.''
जहां तक व्यापार की बात है तो ये इस वार्ता का प्रमुख एजेंडा नहीं होगा. हालांकि कुछ ज़रूरी मुद्दों पर चर्चा हो सकती है.
अमरीका ने इस साल भारत से आयातित स्टील और एल्युमीनियम के उत्पादों पर टैक्स बढ़ा दिया था. इसके जवाब में भारत ने भी अमरीका के कई उत्पादों पर लगने वाला आयात शुल्क बढ़ा दिया था.
आर्थिक संकट से जूझ रहे देशभर के मदरसा शिक्षकों ने बुधवार यानी 5 सितंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ धरना-प्रदर्शन किया.
मदरसा शिक्षकों का आरोप है कि केंद्र सरकार शिक्षकों को तय मानदेय नहीं दे रही है, जिससे अधिकांश मदरसे बंद होने की कगार पर आ गए हैं और शिक्षकों की हालत बद से बदतर होती जा रही है.
दरअसल, केंद्र सरकार स्कीम फॉर प्रोवाडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन इन मदरसा (एसपीक्यूएम) यानी मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत पोस्ट ग्रैजुएट शिक्षकों को 12 हज़ार और ग्रैजुएट शिक्षकों को 6 हज़ार प्रतिमाह मानदेय देती है. मदरसा शिक्षकों का आरोप है कि पिछले 30 महीने से एसपीक्यूईएम योजना के तहत मिलने वाला मानदेय नहीं मिल रहा है.
इसके तहत 2016-17 के सत्र से लेकर अब तक का किसी भी शिक्षक को मानदेय नहीं दिया गया है. इससे उनकी आर्थिक स्थिति बदतर हो रही है और शिक्षक नौकरी छोड़ने को भी मजबूर हो रहे हैं.
इस्लामिक मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एजाज अहमद ने बीबीसी को बताया, "केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ग्रेजुएट शिक्षक को छह हज़ार रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक को 12 हज़ार रुपये देती है जबकि राज्य सरकार ग्रेजुएट शिक्षक को दो हज़ार रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक को तीन हज़ार रुपये अलग से देती है. राज्य सरकार ने अपना अंश दे दिया है, लेकिन केंद्र ने पिछले 30 महीने से अपना अनुदान नहीं दिया है. इससे शिक्षकों की भुखमरी की स्थिति आ गई है. प्रदेश के सभी मदरसा शिक्षकों की योग्यता मान्यता के अनुरूप है."
बीबीसी ने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गय्यूर उल-हसन रिज़वी से इस विषय में पूछा.
उन्होंने कहा, "मदरसा शिक्षकों का केंद्र सरकार से पिछले 30 महीनों से मानदेय बकाया है. इसी को लेकर मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने बुधवार को मुझसे मुलाकात की. मैं केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात करके इस मसले पर चर्चा करूंगा और पूरी कोशिश करूंगा कि मदरसा शिक्षकों को उनका बकाया मानदेय मिल जाए."
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